Type Here to Get Search Results !

आखिर क्या है सच? — न्यायधानी बिलासपुर में व्यवस्था पर उठते सवाल

आखिर क्या है सच? — न्यायधानी बिलासपुर में व्यवस्था पर उठते सवाल

दुलाल मुखर्जी| POWER NEWS 24 BHARAT 

बिलासपुर, छत्तीसगढ़ की न्यायधानी कहलाने वाली इस नगरी में इन दिनों हालात कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहे हैं। एक ओर जिला प्रशासन और पुलिस लगातार ताबड़तोड़ कार्रवाई करते नजर आ रहे हैं — कहीं अशांति फैलाने वालों पर शिकंजा कसते हुए, कहीं चाकूबाजी या नशे के कारोबार पर रोक लगाने के प्रयास करते हुए, तो कहीं हेलमेट अभियान के जरिए यातायात नियमों का पालन सुनिश्चित करते हुए। प्रशासन की सक्रियता और पुलिस की मुस्तैदी दिखती तो है, लेकिन अपराधों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा।

कभी पुलिस कर्मियों पर खुद वर्दी में शराब पीने के आरोप लगते हैं, तो कभी न्यायालय परिसर में गुंडागर्दी के दृश्य देखने को मिलते हैं। कहीं एक महिला अपनी परेशानी से त्रस्त होकर नेहरू चौक जैसे व्यस्त स्थल पर धरना देने बैठ जाती है, तो कहीं लोग पुलिस पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप लगाते नजर आते हैं। सवाल यही उठता है — आखिर क्या है सच?

ठगी, साइबर अपराध और अव्यवस्था की नई परतें

शहर में साइबर ठगों का नेटवर्क लगातार फैलता जा रहा है। कभी ऑनलाइन ठगी, तो कभी जमीन के नाम पर लोगों को लाखों का चूना लगाया जा रहा है। हर विभाग में अधिकारी और कर्मचारी तैनात हैं, फिर भी इन घटनाओं पर लगाम नहीं लग पा रही।

जनता परेशान है, रोज़ाना कलेक्टर कार्यालय के चक्कर काट रही है, जनदर्शन में अपनी व्यथा सुना रही है, लेकिन समाधान अधर में लटक जाता है। न्यायालयों में भी मुकदमे पहले दिन निपट नहीं पाते और दूसरे ही दिन सैकड़ों नए मामले दर्ज हो जाते हैं। आखिर प्रशासनिक मशीनरी में खामियां कहाँ हैं? क्या सिस्टम जनता की उम्मीदों पर खरा उतर रहा है?

इस खबर को पूरा देखे हमारे यूट्यूब पर...



विकास के दावों के बीच खस्ताहाल सड़के

सरकार विकास के दावे करती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और कहती है। शहर के मुख्य बाजारों और कॉलोनियों में सड़कों की हालत बदतर है — जगह-जगह गड्ढे, टूटी हुई सड़कें, और दिखावे के लिए सिर्फ शुरुआत या अंत में पिचिंग का काम। ठेकेदारों की लापरवाही और प्रशासन की चुप्पी सवाल खड़े करती है — क्या विकास केवल कागजों तक सीमित रह गया है?

बिजली बिल और जनता की लूट

बिजली बिल के नाम पर जनता की जेब पर हर महीने नई मार पड़ रही है। स्मार्ट मीटर के नाम पर हो रही लूट और उसके विरोध में उठती आवाज़ों को नई योजनाओं और “मुक्त बिजली” के वादों में दबा दिया जाता है। सरकार के बयान और जनता के अनुभवों के बीच की खाई हर दिन चौड़ी होती जा रही है।

जनता की गुहार, मगर सुनवाई कब?

वार्ड से लेकर पंचायत, पंचायत से लेकर जिला — हर स्तर पर अधिकारी और जनप्रतिनिधि मौजूद हैं, पर आम जनता को फिर भी अपनी समस्या लेकर कलेक्टर कार्यालय या जनदर्शन तक जाना पड़ता है। लाइनें लंबी होती हैं, वादे बड़े होते हैं, लेकिन समाधान का इंतजार अंतहीन।

इस खबर को पूरा देखे हमारे यूट्यूब पर...

कई बार पीड़ित परिवार गुहार लगाते-लगाते थक जाते हैं, और आखिर में “मिलीभगत” का शिकार होकर उनकी फाइल बंद हो जाती है। वहीं शासन-प्रशासन का दावा वही पुराना — “हम जनता के लिए तत्पर हैं।”

बिलासपुर आज दो चेहरों में बंटा दिखाई देता है — एक कागजों पर चमकता शहर और दूसरा सच्चाई में जूझता नागरिक जीवन।

प्रशासन की मुस्तैदी और पुलिस की कार्रवाई सराहनीय है, लेकिन जब तक सिस्टम के भीतर की गड़बड़ियां, लापरवाही और भ्रष्टाचार खत्म नहीं होंगे, तब तक जनता की पीड़ा बनी रहेगी।

सवाल अब भी वही है — आखिर क्या है सच? 

एक तरफ नगर निगम सफाई अभियान और स्वच्छता पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च होने का दावा करती है, वहीं दूसरी ओर शहर की सड़कों के किनारे कचरों के ढेर बदस्तूर नजर आते हैं। कहीं नालियों में जमी गंदगी महीनों तक जस की तस पड़ी रहती है, तो कहीं वार्डों में कचरा उठाव सिर्फ कागज़ों पर दिखाई देता है। बजट बढ़ता जा रहा है, टेंडर जारी होते हैं, भुगतान भी होता है — लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि शहर अब भी कचरे के बोझ तले घुट रहा है। सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर सफाई पर खर्च करोड़ों के बावजूद बदल क्या रहा है — व्यवस्था या सिर्फ आंकड़े? 

जाति–धर्म की राजनीति और कानून-व्यवस्था — आखिर क्या है सच?

एक तरफ शहर में जाति और धर्म के नाम पर आरोप–प्रत्यारोप थमने का नाम नहीं ले रहे। लोग सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाज़ी और उकसावे भरी टिप्पणियाँ करते दिखाई दे रहे हैं। रिश्तों, समाज और कानून से ऊपर जाति और धर्म को साबित करने की होड़ ने माहौल लगातार तनावपूर्ण बनाया है।

ऐसे में जब पुलिस कार्रवाई करती है तो एक अलग ही दृश्य सामने आता है —
कभी गिरफ्तारी के विरोध में जेल के बाहर नारेबाजी,
तो कभी न्यायालय परिसर में जाति के नाम पर प्रदर्शन और आक्रोश।
कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली पुलिस चाहे जिस पक्ष पर कार्रवाई करे, दूसरा पक्ष उसे “पक्षपातपूर्ण” करार देने में देर नहीं लगाता।

नतीजा — समाज दो हिस्सों में बंटा दिखता है।
एक वर्ग कहता है कि पुलिस और प्रशासन का कदम सही है,
जबकि दूसरा इसे अपनी जाति–धर्म के खिलाफ हमला बताता है।
घटनाओं के बीच सत्य क्या है, यह उलझकर रह जाता है।

प्रश्न यही खड़ा होता है —
क्या न्याय का आधार कानून होना चाहिए या जाति और धर्म की आवाज़ें?
क्या अपराध अपराध है या जाति–धर्म के नाम पर उसे भी माफ़ कर दिया जाए?
और सबसे बड़ा सवाल —

आखिर क्या है सच?

आपकी क्या प्रतिक्रिया है हमे Whatsapp पर कह सकते है हमारा व्हाट्सएप संख्या है 8349600835


Post a Comment

0 Comments

POWER NEWS 24 BHARAT™

“आपकी आवाज़, आपकी खबर — हर सच के साथ”


समाचार एवं विज्ञापन के लिए हमसे संपर्क करें

📲 WhatsApp: 7739000835
Call: 9953763334 | +91 97526 08004
Email: powernews24.live@gmail.com


🏢 प्रधान कार्यालय:
पुराना बस स्टैंड, बिलासपुर (छ.ग.)
पिन – 495112

📰 🎥 📡 📢