कलम के सिपाही और उपन्यास सम्राट के नाम से जाने जाते थे मुंशी प्रेमचंद- सुषमा चतुर्वेदी(प्राचार्या)
कतरास: 31-07-2024
महिला डीएवी महाविद्यालय कतरास में मुंशी प्रेमचंद की जीवनी मुंशी प्रेमचंद की जन्मदिन मनाई गई. कॉलेज की प्राचार्या सुषमा चतुर्वेदी ने बताया कि मुंशी प्रेमचंद को "कलम के सिपाही" के नाम से जाना जाता है. मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को यू पी के वाराणसी के लमही गाँव में हुआ था। इनकी माता आनंदी देवी एवम पिता का नाम मुंशी अजायबराय है। प्रेमचंद का वास्तविक नाम "धनपत राय " था. इन्हें उपन्यास सम्राट, कथा सम्राट, कलम के सिपाही की उपाधि दी गयी. इन्होंने हंस नामक पत्रिका का संपादन किया था। गांधीजी के आह्वाहन पर ये नौकरी छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. इन्होंने हिंदी, उर्दू, फ़ारसी में अनेक पुस्तकों, उपन्यासों, कहानियों की रचना की. इनके उपन्यास "सोजे वतन ( देश का दर्द )" को अंग्रेजों ने प्रतिबंधित कर दिया तथा इन्हें लिखने पर रोक लगा दी. जिसके कारण इन्होंने धनपत राय का नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से लिखना शुरू कर दिया. इन्होंने मानसरोवर, शतरंज के खिलाडी, बड़े घर की बेटी, कर्म भूमि, निर्मला, नमक का दारोगा, पूस की रात, ईदगाह, रंगभूमि, सेवा सदन, कफ़न ( प्रेमचंद की अंतिम कहानी),दो बैलों की कथा, पंच परमेश्वर, मानसरोवर आदि जैसे कई महत्वपूर्ण उपन्यास व पुस्तकों की रचना की. इनके द्वारा लिखी गई अंतिम उपन्यास "गोदान" था. मंगलसूत्र नामक उपन्यास को प्रेमचंद पूर्ण नही कर पाए. मौके पर प्रोफेसर संगीता कुमारी, प्रोफेसर शोभा सिंह, प्रोफेसर के के सिंह, प्रोफेसर अमित राय, प्रेमनाथ सिंह, अर्पण एवं कई छात्राएं मौजूद थी.


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