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पत्रकारिता पर पहरा! छत्तीसगढ़ सरकार का नया आदेश बना विवाद का कारण

पत्रकारिता पर पहरा! छत्तीसगढ़ सरकार का नया आदेश बना विवाद का कारण


रायपुर, 18 जून 2025: छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जारी एक नए आदेश ने राज्यभर के पत्रकारों और जन प्रतिनिधियों को हिला कर रख दिया है। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने 13 जून 2025 को एक फरमान जारी किया है, जिसके तहत अब पत्रकार सरकारी अस्पतालों में रिपोर्टिंग तभी कर सकेंगे जब उन्हें जनसंपर्क अधिकारी या अधिकृत मीडिया लायजन अफसर से अनुमति प्राप्त हो।

यह आदेश राज्य में ‘सुशासन तिहार’ के माहौल में आया है, लेकिन अब इसे लेकर सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह आदेश प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है?

“यह तंत्र की तानाशाही है, लोकतंत्र की नहीं” — दुलाल मुखर्जी, प्रधान संपादक


पावर न्यूज ट्वेन्टी फॉर भारत के प्रधान संपादक दुलाल मुखर्जी ने इस आदेश की तीव्र निंदा की है। उनका कहना है:
सरकार 'सुशासन तिहार' मनाकर अपनी पीठ थपथपा रही है, लेकिन जमीनी हकीकत अवैध खनन, बढ़ते अपराध, भ्रष्टाचार और स्वास्थ्य घोटालों की है।
अब जब पत्रकार इन विसंगतियों की रिपोर्टिंग करना चाहें, तो उन्हें पहले इजाज़त लेनी पड़े? यह प्रोटोकॉल नहीं, प्रेस की आज़ादी का गला घोंटना है।

मेडिकल माफिया और प्रशासनिक सेंसरशिप का गठजोड़?

मुखर्जी का आरोप है कि यह कदम एक “सुनियोजित षड्यंत्र” का हिस्सा है, जिससे स्वास्थ्य क्षेत्र में व्याप्त घोटालों और काले कारनामों को छिपाया जा सके।
क्या अब पत्रकार मेडिकल माफिया से पूछकर रिपोर्टिंग करेंगे — ‘आपकी लापरवाही पर स्टोरी चला सकते हैं क्या?’ यह आदेश नहीं, घोटालों को ढंकने का रास्ता है।

ब्लॉक स्तर तक फैला है भ्रष्टाचार


उन्होंने बताया कि राज्य के प्रत्येक जिले, ब्लॉक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी और प्रशासनिक लापरवाही फैली हुई है।
ग्राउंड रिपोर्टिंग पर रोक लगाकर माफिया को खुली छूट दी जा रही है।
पत्रकार जगत और नागरिकों की संयुक्त अपील: आदेश हो रद्द

पत्रकारों ने इस आदेश को प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिकों के जानने के अधिकार पर हमला बताया है।

उनकी प्रमुख मांगें हैं:

1. 13 जून 2025 का यह आदेश तुरंत वापस लिया जाए।
2. पत्रकारों को सरकारी और निजी अस्पतालों में स्वतंत्र रिपोर्टिंग की अनुमति दी जाए।
3. मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानते हुए उसका सम्मान सुनिश्चित किया जाए।

“यदि आज हम चुप रहे, तो कल बोलने की आज़ादी भी नहीं बचेगी”

यह मामला सिर्फ पत्रकारों का नहीं, हर जागरूक नागरिक का है।
यह लोकतंत्र बनाम नियंत्रण की लड़ाई है — जिसमें “सच बोलने और दिखाने की स्वतंत्रता” बचाए रखना हमारी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है।

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