T.I रतनपुर पर पीड़ितों को धमकाने का आरोप, पुलिस की भूमिका पर उठे सवाल
रतनपुर, छत्तीसगढ़ | दिनांक: 3 जून 2025
रतनपुर क्षेत्र में बीते रविवार को उस वक्त अफरातफरी मच गई जब करीब 15 की संख्या में बजरंग दल से जुड़े लोगों ने एक स्थानीय चर्च में घुसकर प्रार्थना के दौरान जबरदस्ती हमला कर दिया। प्रत्यक्षदर्शियों और पीड़ितों के अनुसार, चर्च के संचालक से न केवल मारपीट की गई, बल्कि गाली-गलौज और महिलाओं के साथ भी बदसलूकी की गई। बताया जा रहा है कि महिलाओं के साथ धक्का-मुक्की करते हुए उनके गुप्तांगों तक में हाथ डाला गया, जिससे इलाके में आक्रोश व्याप्त है।
हमलावरों की पहचान के रूप में कुछ नाम सामने आए हैं, जिनमें सूरज ब्राह्मण (पिता माखनलाल ब्राह्मण), गौरव धनकर, वीरेंद्र कश्यप, कस्तूरबा सूर्यवंशी, आकाश यादव और नितेश यादव शामिल हैं। बताया जा रहा है कि ये सभी बजरंग दल ग्रुप से जुड़े हैं और खुलेआम संगठन के नाम पर धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं।
घटना के विरोध में आज करीब 300 लोग रतनपुर थाने पहुंचे और दोषियों के खिलाफ F.I.R दर्ज करने की मांग की। लेकिन थाना प्रभारी T.I चौहान ने न केवल F.I.R दर्ज करने से इनकार कर दिया, बल्कि भीड़ को डांटते हुए थाने से बाहर निकाल दिया। मौके पर मौजूद एक प्रताड़ित महिला का बयान सामने आया है, जिसमें उसने कहा कि T.I चौहान ने उसे धमकाया और कहा—"F.I.R कराएगी तो अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारेगी, अभी तेरे घर से उठाकर ले आएंगे और दो केस बनाकर फंसा देंगे।"
महिला ने यह भी बताया कि T.I ने उससे पूछा—"तू प्रार्थना क्यों करती है?" यह कथन सीधे तौर पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है, जो प्रत्येक नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
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घटना के बाद कई सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार संगठन सवाल उठा रहे हैं कि पुलिस और प्रशासन आखिर किसके इशारे पर काम कर रहा है? क्यों खुलेआम संविधान विरोधी कृत्य करने वालों को संरक्षण दिया जा रहा है? पीड़ितों के अनुसार, बजरंग दल के कहने पर पुलिस चर्च में गई और उनके साथ मिलकर दबाव बनाया।
चौंकाने वाली बात यह है कि जब धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हुआ, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हुआ, तब पुलिस मूकदर्शक बनी रही, जबकि तथाकथित "धर्मांतरण" जैसे मुद्दों पर पुलिस तेजी से सक्रिय हो जाती है।
इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि पुलिस की भूमिका निष्पक्ष नहीं रह गई है और सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस अब जनता की सुरक्षा के लिए है या कुछ संगठनों के निजी हितों की पूर्ति के लिए?
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