जो हारा नहीं, वो दुलाल है: संघर्ष, सेवा और सफलता की "दास्तान"
श्री दुलाल मुखर्जी, एक ऐसा नाम जो आज डीएमवीवी भारतीय महिला शक्ति फाउंडेशन और SERS ANSHIKA UDHYOG PRIVATE LIMITED जैसी सामाजिक व औद्योगिक संस्थाओं का पर्याय बन चुका है। उनका जीवन प्रेरणा का स्त्रोत है – एक साधारण बालक से लेकर समाजसेवी और संस्थापक निदेशक बनने तक का सफर संघर्ष, समर्पण और सेवा की भावना से भरा रहा है।
शुरुआती जीवन और संघर्ष: झारखंड के एक छोटे से गांव में जन्मे दुलाल मुखर्जी के सिर से बचपन में ही पिता का साया उठ गया था। आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। 10वीं तक पढ़ाई के बाद उन्हें जीवन यापन के लिए दिल्ली जैसे महानगर में मजदूरी, होटल में वेटर का काम, चाय की टपरी और ट्रक में काम तक करना पड़ा। उन्होंने जीवन की हर कठिनाई को हिम्मत और ईमानदारी से झेला।
सेवा की ओर रुझान: दुलाल जी बचपन से ही सेवा कार्यों की ओर आकर्षित रहे। जीवन में कई बार धोखा खाने के बावजूद उनका विश्वास सेवा और नारी सशक्तिकरण पर अडिग रहा। उन्होंने महसूस किया कि महिलाएं और बेरोजगार युवा तभी आत्मनिर्भर बन सकते हैं जब उन्हें स्वरोजगार के अवसर मिलें।
संगठन की स्थापना: इस सोच को साकार रूप देने के लिए उन्होंने डीएमवीवी भारतीय महिला शक्ति फाउंडेशन की नींव रखी, जिसका उद्देश्य है – ग्रामीण महिलाओं को संगठित कर स्वावलंबी बनाना। इसके साथ ही उन्होंने SERS ANSHIKA UDHYOG PRIVATE LIMITED की स्थापना की, जो कुटीर उद्योगों, हस्तशिल्प, और स्व-रोजगार प्रोत्साहन को बढ़ावा देता है।
कार्यकाल की मुख्य उपलब्धियां:
- सैकड़ों जिलों में ब्रांच प्रबंधन की शुरुआत।
- महिलाओं को मुफ्त प्रशिक्षण एवं रोजगार से जोड़ना।
- स्व-रोजगार क्रांति योजना का संचालन।
- सरकारी सहयोग के लिए कई जिलों में ज्ञापन और बैठकें।
SERS ANSHIKA के माध्यम से उत्पादन, बिक्री व निर्यात योजनाएं।
उदासी के पल: संघर्षों से भरा यह सफर हमेशा आसान नहीं रहा। उन्हें अपनों से धोखा मिला, आर्थिक परेशानियां आईं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। समाज की उपेक्षा, सरकारी तंत्र की लापरवाही और लोगों की उपेक्षा ने उन्हें कई बार तोड़ा, लेकिन उनके हौसले ने हर बार उन्हें नया रास्ता दिखाया।
आज का स्वरूप: आज श्री दुलाल मुखर्जी न केवल एक प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता हैं, बल्कि डीएमवीवी फाउंडेशन और SERS ANSHIKA UDHYOG जैसे संगठनों के माध्यम से हजारों लोगों के जीवन को दिशा दे रहे हैं। उनकी पत्नी, बेटी अंशिका मुखर्जी, और समर्पित टीम उनके इस मिशन में सहभागी हैं।
दुलाल मुखर्जी का जीवन एक उदाहरण है कि सच्ची लगन, सेवा की भावना और दृढ़ संकल्प से कोई भी व्यक्ति असंभव को संभव बना सकता है। वे आज भी कहते हैं
अंदरूनी चुनौतियाँ और टूटन का दर्द: लेकिन यह सफर केवल प्रेरणा का नहीं था – इसमें बहुत दर्द, पीड़ा और विश्वासघात भी शामिल है।
संस्था की स्थापना के बाद कई लोग ऐसे आए जो परिवार बनकर भीतर तक घुसे, लेकिन उनका उद्देश्य केवल टीम को तोड़ना, विश्वास को डगमगाना और नेगेटिविटी फैलाना था।
कुछ ने यह तक कह दिया –
"तुम इस संस्था को चला नहीं पाओगे", "यह फाउंडेशन फ्रॉड है", "तुम्हारा मकसद गलत है" –
यह सुनना जितना अपमानजनक था, उतना ही मन को चीर देने वाला भी।
कुछ लोग जो हमसे ही सीखे, आगे चलकर उन्हीं ने हमारी टीम को तोड़ने में भूमिका निभाई। कुछ ऐसे भी थे जो हमें गालियाँ देकर गए, कई लोग हमारी पीठ में छुरा घोंपकर निकल गए। लेकिन यह भी सच है कि कुछ टूटे हुए साथी लौटे – पछताते हुए, सच्चाई को समझते हुए।
फिर भी न झुके, न रुके: हर आंसू को ताकत में बदला गया, हर विश्वासघात को सबक में, और हर आलोचना को प्रेरणा में।
दुलाल मुखर्जी ने हार नहीं मानी।
उन्होंने अपने मिशन को और भी मज़बूती से आगे बढ़ाया – बिना बदले, बिना रुकावट के।
“यह जिम्मेदारी बहुत बड़ी है, और इसे पूरा करना ही मेरा जीवन लक्ष्य है।”

















0 Comments